स्मृतियां सावन की . . . . .
काम आई पतझड़ में
हर व्यथा डाल से विलगने की
सहा हमने नए सृजन के लिए ।
मन हारा नहीं डाल का
पुरानी पत्तियां खाद बनेंगी
थोड़ा दर्द सहना होगा
पवन थपेड़ों में रहना होगा
अंदर आंसू लिए मन में
कुछ ऊर्जा सुलगाकर
उमंगों की उष्मा सहजाकर
धैर्य से रखा डाल ने
समय बदला उसका
आज उस ठूठ पर
कोपलें उगने लगीं।
सुख-दुख की
आंख मिचौली जीवन
विष पीकर ही
अमृत बनता शिवत्व ।।
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