महत्वाकांक्षा का मोती पलता है
निष्ठुरता के सीप में।
सहन नहीं कर पाता
अपने अवरोधों को ;
कत्ल कर देता है उनका
जो उसे खतरे का संशय लगते हैं ।
सफलता के ये कुतुबमीनारें
बनी हैं शोषितों के खून से ,
शाहों के जुनून से ।
“हर सफल यहां भावना का व्यापारी है”।
रेत ही रेत , नेहनिर्झर बह चुका है ।
अर्थ के प्रमाद , उन्माद का नित्य प्रदर्शन!
दिखती है बस-
“मृत संवेदना प्रखर प्रवंचना।”
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प्रत्येक पंक्तिया लाजवाब—-
सफलता के ये कुतुबमीनारें
बनी हैं शोषितों के खून से ,
शाहों के जुनून से ।
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अद्भुत लेखन..बहुत बढ़िया👌🏻👍🏻
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धन्यवाद, आभार आपका इस कविता को सराहने और मेरे उत्साहवर्धन के लिए🙏🙏
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बेहतरीन
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Thank you very much.🙏🙏
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Pleasure 😊
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